पहाड़-पानी-परम्परा के संरक्षण में आगे आई महिला शक्ति

पहाड़-पानी-परम्परा के संरक्षण में आगे आई महिला शक्ति

पहाड़-पानी-परम्परा के संरक्षण में आगे आई महिला शक्ति

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न्यूज़ डेस्क , नैनीताल ( nainilive.com )- परस्पर सामाजिक भागीदारी के साथ देव भूमि की महिला शक्ति ने पहाड़ पानी परम्परा के सरंक्षण हेतु ऐतिहासिक मंदिरो एवं नौले के शहर द्वाराहाट में श्री गणेश चतुर्थी से शुभ अवसर पर ग्राम छतीना खाल के प्राचीन गणेश नौले पर पारम्परिक विधि विधान से नौला संस्कार पूजन के साथ समस्त पारम्परिक नौले धरे एवं मंदिरो को बचाने का संकल्प लिया।


यह सम्पूर्ण द्वाराहाट वासियों के लिए गौरव की बात है कि इस क्षेत्र के जाने माने 94 वर्षीय पारम्परिक लोकगायक श्री टीकाराम उपाध्याय जी के द्वारा इस शुभकार्य का शुभारम्भ हुवा है। श्री टीकाराम उपाध्याय जी केवल द्वाराहाट क्षेत्र के प्रसिद्ध लोक गायक ही नहीं बल्कि समस्त कुमाऊं मंडल में उनकी भगनौल गायक के रूप में ख्याति रही है।उनके द्वारा स्याल्दे बिखोती में गाए गए गीत उस साल के लोक प्रचलित गीत बन जाते हैं। उन्होंने पिछले साल गुमनामी में लुप्त हो रहे मैनोली के कत्युरीकालीन गणेश नौले की निशानदेही की थी।हालांकि जो आज भी अपनी दुरवस्था में है।आशा है कि नौला फाउंडेशन की ओर से इस नौले का जीर्णोद्धार भी निकट भविष्य में किया जाएगा। विदित हो कि भारतीय संस्कृति में जीवन धारक तथा लोक संरक्षक तत्त्व के रूप में जल की प्रशंसा की गई है। बहुत ही हर्ष का विषय है कि उत्तराखंड में पहाड़ पानी परम्परा के तहत समस्त पारम्परिक जल स्रोतों के साथ लगभग विलुप्त हो चुकी महान नौलों धारा संस्कृति के पुनर्जागरण हेतु संकल्पित समर्पित सामाजिक सेवा संस्था ‘नौला फाउंडेशन’ की ओर से पिछले दो वर्षों से जो लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, उसी परम्परा में फाउंडेशन द्वारा अल्मोड़ा जिला द्वाराहाट स्थित छतीना खाव के अति प्राचीन गणेश नौले का जीर्णोद्धार संस्कार कार्यक्रम पर किया गया है।

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गणेश चतुर्थी के पावन पर्व के शुभ अवसर पर नौला फ़ाउंडेशन के तत्वावधान में हाड़,पानी,परम्परा को बचाने के लिए भगीरथ प्रयास करते हुवे द्वाराहाट विकास खंड के ग्राम पंचायत छतेणा में पौराणिक नौले का विधिविधान से पूजा अर्चना के साथ नौला फ़ाउंडेशन के जल संरक्षण मिशन का शुभारम्भ हुवाँ।इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ लोककलाकार श्री टीका राम उपाध्याय जी को ग्राम प्रधान छतीना खाल, माननीय सतीश उपाध्याय जी,नौला फ़ाउंडेशन सचिव श्रीमान महेंद्र बनेशी जी ने संयुक्त रूप से सौल ओढ़ाकर सम्मानित किया,महिला मंगलदल और मातृशक्ति द्वारा पारंपरिक परिधान में उपस्थित होकर पूजा अर्चना में प्रतिभाग किया,ग्रामीणों ने नौला फ़ाउंडेशन के प्रयासों की तारिफ़ करते हुवे शुभकामनाएँ दी।

कार्यक्रम में प्रतिनिधि नौला फ़ाउंडेशन श्री भुपेंद्र बिष्ट जी,समनवयक श्री गणेश कठायत जी,छात्र संघ अध्यक्ष,सामाजिक कार्यकर्ता श्री पंकज आर्या जी सहित तमाम लोग उपस्थित थे। श्री टीका राम उपाध्याय जी ने भगनौल गाकर सब को आशीर्वाद दिया।

गौरतलब है कि नौला फाउंडेशन ‘पहाड़ पानी परम्परा’ के तहत परस्पर सामाजिक सहभागिता से हिमालयी जलीय पारिस्थितिकी व जैव विविधता के संरक्षण की संकल्पना को लेकर पिछले अनेक वर्षों से जीर्ण शीर्ण नौलों के जीर्णोद्धार और उसकी ऐतिहासिक पहचान को संरक्षित करने की दृष्टि से प्रयत्नशील है। इसी योजना के अंतर्गत नौला फाउंडेशन ने द्वाराहाट क्षेत्र की सदानीरा खीरगंगा मिशन के तहत यह शुरुआत की है। इसके बाद क्षेत्र के अन्य नौलों के पुनरुद्धार की योजनाओं पर भी समाज की सहभागिता से कार्य किया जाएगा और सामाजिक दृष्टि से लोगों को नौलों के संरक्षण हेतु चेतना जागृत की जाएगी।

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जल के प्रति आस्था भाव का परिणाम है कि संस्कृत वाङ्मय के विभिन्न ग्रन्थों में वापी,कूप,तडाग,नौलों आदि जलाशयों के निर्माण और जीर्णोद्धार को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत ही पुण्यदायी माना गया है । ‘प्रासादमण्डन’ नामक वास्तुशास्त्र के ग्रन्थ में कहा गया है कि जो व्यक्ति जीव जन्तुओं और वृक्ष वनस्पतियों की जीवन रक्षा और जैव विविधता के प्रयोजन से जलाशय का निर्माण करता है या दान स्वरूप देता है तो उसे इस लोक और परलोक में सुख की प्राप्ति होती है ।

पुराणकारों ने भूमिगत जल के संरक्षण और संवर्धन को विशेष रूप से प्रोत्साहित करने के लिए नए जलाशयों के निर्माण और पुराने तथा जीर्ण-शीर्ण जलाशयों,नौलों,धारों की मरम्मत और जीर्णोद्धार को अत्यन्त पुण्यदायी कार्य माना है। वाल्मीकि रामायण में राज्य की ओर से सिंचाई व्यवस्था को सुचारु बनाने तथा जल प्रबन्धन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए नदियों के तटों पर बांध बनाना और जल के बिखरे हुए स्रोतों को संचयित करने का उल्लेख आया है। रामायण में ही निर्जल प्रदेशों में नाना प्रकार के जलाशयों जैसे कुओं, बावड़ियों आदि के निर्माण द्वारा जलसंचयन को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया है।

चौदहवीं शताब्दी के दक्षिण भारत के पोरुममिल्ला नामक तडाक अभिलेख में जल को ‘ब्रह्म’ की संज्ञा देकर उसे चराचर जगत् का बीज कहा गया है। जल का आश्रय लेकर ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश का आविर्भाव होता है। प्राचीन भारतीय जल संस्कृति की इसी पृष्ठभूमि में कहना चाहुंगा की नौला फाउंडेशन के लिए इससे अच्छा और क्या मणि-कांचन संयोग हो सकता है कि उसके सतत प्रयत्नों से गणेश चतुर्थी के शुभ दिन पर गणेश नौले के जीर्णोद्धार से उसके द्वारा सदानीरा खीरगंगा मिशन बृहत जल संरक्षण योजना का श्रीगणेश किया गया है।

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इस सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम में सभी से नौला मित्रो, गांव वासियो, महिला मंगल दलों, युवा साथियो ने गांव के लगभग सभी नौलो धारो पर सभी विशेष सफाई अभियान चलाया और विधि विधान से नौला पूजन के साथ मंगल गीत गाये और अपनी परम्परा व संस्कार को बचाने का संकल्प लिया। इस पुरे कार्यक्रम की विशेषता ये थी की पहली बार गांव के सभी लोगो ने पवित्र नौलों की साफ़ सफाई कार्यक्रम को मिलकर किया और गांव में बड़े बुजुर्गो को पवित्र नौले पर बुलाकर भगवान श्री गणेश पूजन के साथ उनका आशीर्वाद भी लिया और उनसे वादा किया की अपने नौलों धारों का सम्मान वापस लाने में सबकी मदद करेंगे।

बाद में सभी ने नौला फाउंडेशन को धन्यवाद दिया जो उन्होंने हमारी जल संस्कृति हमारी परम्परा को श्री गणेश चतुर्थी के दिन वापस लाने में कामयाब हुआ, समस्त गांव वाले एकजुट होकर गांव की एकता को भी बल मिला I भगवान श्री लक्ष्मी नारायण के प्रतीक ये पवित्र जल मंदिर नौले धारों का हमारे उत्तराखंड में धार्मिक, सांस्कृतिक व् ऐतिहासिक महत्व रहा हैं और हमारा कोई भी हिन्दू संस्कार इन पवित्र नौलों धारों की पूजन से ही संपन्न होता हैं I नौला फाउंडेशन का एकमात्र उद्द्येश्य सामाजिक सहभागिता से हिमालयी क्षेत्र के ऐतिहासिक व पारम्परिक विरासत जल मंदिर सभी नौले धारों को उनका सम्मान वापस दिलाना, उनकी पहचान वापस दिलाना हैं.

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