कोविड – 19 परिदृश्य में हिमालयी औषधीय पादपों की आजीविका समवर्धन में भूमिका विषय पर वेबिनार का हुआ आयोजन

कोविड - 19 परिदृश्य में हिमालयी औषधीय पादपों की आजीविका समवर्धन में भूमिका विषय पर वेबिनार का हुआ आयोजन

कोविड - 19 परिदृश्य में हिमालयी औषधीय पादपों की आजीविका समवर्धन में भूमिका विषय पर वेबिनार का हुआ आयोजन

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न्यूज़ डेस्क , नैनीताल ( nainilive.com )- आज दिनांक 28.08.2020 के दिन गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी कटारमल, अल्मोड़ा, प्रो0 वाई0पी0एस0 पांग्ती शोध प्रतिष्ठान, नैनीताल तथा वनस्पति विज्ञान विभाग, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल के तत्वाधान में एक दिवसीय वैबिनार “Promoting MAPs Sector for Sustainable Development under Post Covid – 19 Scenario in the Western Himalaya” का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के शुरूवात में सभी ने प्रो0 वाई0पी0एस0 पांग्ती को श्रृद्धांजली देते हुए उनके द्वारा किये गये कार्यो को याद किया। कार्यक्रम की शुरूवात में डाॅ0 बी0एस0 कालाकोटी अध्यक्ष प्रो. वाई. पी. एस. पांग्ती शोध प्रतिष्ठान, नैनीताल ने सभी वक्ताओं तथा प्रतिभागियों का स्वागत किया। डा0 पांग्ती तथा उनके द्वारा हिमालयी पादप सम्पदा पर किये गए कार्यो को याद करते हुए डाॅ0 जी0एस0 रावत पूर्व निदेशक, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने कार्यक्रम की अगुवाई की।

वैबिनार के मुख्य अतिथि प्रो0 एन0के0 जोशी कुलपति, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल ने अपने वक्तव्य में बताया कि कोविड-19 की इस वैश्विक आपदा में हिमालयी औषधीय पादप एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है तथा उन्होने बताया कि कैसे औषधीय पादप सम्पदा को संरक्षित करते हुए उनके वृहद उपयोगों का आंकलन कर उन्हें हिमालयी क्षेत्र में रह रहें लोगों के लिए जीविका के साधन के रूप में बढ़ावा दिया जा सकता है। उन्होंने हिमालयी क्षेत्रों में पायी जानी वाली विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों से प्रवाशी लोगो को स्वरोजगार से जोड़ने हेतु अपील की। पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल अल्मोड़ा के निदेशक डाॅ0 आर0एस0 रावल ने अपने उद्बोधन में बताय कि कार्यक्रम के द्वारा हमें कुछ ऐसे बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करना होगा जो कि प्रकृति आधारित समाधानों को बढ़ावा देने की तरफ अग्रसर हों। उन्होेंने यह भी बताया कि हिमालयी औषधीय पादपों की खेती को बढ़ावा देकर इस वैश्विक आपदा के समय में उत्पन्न हुई बेरोजगारी की समस्या को दूर किया जा सकता है।

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वैबिनार के अन्तर्गत विभिन्न वक्ताओं के द्वारा औषधीय एवं सगन्ध पादपों की उपलब्धता तथा उनकी खेती को बढ़ावा देने के संबंध में चर्चा की गई। इस बेबिनार में विभिन्न विषय विशेषज्ञो के अपने अपने विचार रखे। बेबिनार के पहले सत्र में डा0 जी0एस0 गोराया, रिटार्यड पी0सी0सी0एफ0 हिमाचल प्रदेश और डा0 एस0एस0 सामन्त निदेशक एच एफ आर0 आई शिमला ने जडी़ बूटियों के महत्व को बताते हुए उनके आकंलन के बारे में विस्तार से बताया उन्होने बताया कि जगलों में इन महत्वपूर्ण जडी़ बूटियों की उपलब्धता हो रही है।

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बेबिनार के दूसरे सत्र में डा0 संजय कुमार निदेशक सी0एस0आई0आर0 आई एच बी टी पालमपुर डा0 सी एस सनवाल निदेशक जडी़ बूटी शोध संस्थान डा0 के0एस0 रावत, एक्जीक्यूटिव निदेशक ई0एम0आर0सी0 ने औषधीय पौधों में किये जा रहे कार्यो का बाजारीकरण एवं Access and benefit sharing को कैसे प्रयोग में लाया जा सके विस्तार से बताया।

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वैबिनार के तीसरे सत्र में डा0 जे0एल0एन0 शास्त्री, सी0ई0ओ0 एन0एम0पी0बी0, नई दिल्ली डा0 बी0एस0 कालाकोटी, अध्यक्ष प्रो0 वाई0पी0एस0 परमार रिसर्च फाॅउन्डेशन और डा0 हेमा लोहनी, निदेशक, सी0ए0पी0 देहरादून ने उद्योगों तथा बाजार में औषधीय की प्रचुर मात्रा में जरूरत का विश्लेषण किया।


वैबिनार के अंतिम सत्र मे डा0 पदम गुरमेट, निदेशक एनआरआई सूवा रिसपा लेह, डा0 सुमित गैरोला, वैज्ञानिक सी0एस0आई0आर0-आई0आई0एम0, जम्मू तथा प्रो0 एम0सी0 नौटियाल, एच0ए0पी0पी0आर0सी0 श्रीनगर गढ़वाल द्वारा पारम्परिक ज्ञान तथा वैज्ञानिक शोध के समन्वय से कैसे औषधीय पादपों के कृषिकारण को बढ़ावा दिया जा सकता है पर चर्चा की।


कार्यक्रम के अन्त में पर्यावरण संस्थान के डाॅ0 आई0डी0 भट्ट तथा वनस्पति विज्ञान विभाग कुमाऊँ विश्वविद्यालय के प्रो0 ललित तिवारी ने सभी वक्ताओं तथा प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया। कार्यक्रम में देश के कई हिस्सों से 10 औषधीय पादप विशेषज्ञ तथा 300 से ज्यादा प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया।

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